दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय मर चुकी संवेदनाएं
गीत -मर चुकी संवेदनाएं
------------------------------
मंच से कुछ नामधारी व्यर्थ करते गर्जनाएं ।
लोग पत्थर के हुए हैं मर चुकी संवेदनाएं ।।
रोज विष का पान करती रो रही गंगा हमारी ,
सात दशकों में दिखी सरकार की करतूत सारी ,
युक्तियाँ पायी नहीं जो रोक दें दूषित प्रथाएं ।
लोग पत्थर के हुए हैं मर चुकी संवेदनाएं ।।1
बिंब, रूपक, छंद वाला रुक गया साहित्य का रथ ,
चाकरों के हाथ बंदी मंच का सीधा सरल पथ ,
सारथी साहित्य के ही भूल बैठे सच दिशाएं ।
लोग पत्थर के हुए हैं मर चुकी संवेदनाएं ।।2
कौन समझेगा हमारी कौम की अंतर व्यथा को ,
कौन परखेगा हमारे छंद को सच्ची कथा को ,
कथ्य की मरने लगीं हैं अर्थगत संभावनाएं ।
लोग पत्थर के हुए हैं मर चुकी संवेदनाएं ।।3
सात तारे आसमां के लुप्त ऋषिवर दिख रहे हैं ,
धुंध ने धरती ढकी है सुप्त दिनकर दिख रहे हैं ,
यंत्र युग में मंत्र की हम खो रहे वैदिक ऋचाएं ।
लोग पत्थर के हुए हैं मर चुकी संवेदनाएं ।।4
नाद पश्यन्ती,परा ने मौन व्रत धारण किया है ,
मध्यमा ने वैखुरी से द्वंद किस कारण किया है ,
लेखिनी के जोर से अब तोड़ "हलधर" ये शिलाएं ।
लोग पत्थर के हुए हैं मर चुकी संवेदनाएं ।।5
हलधर -,copipaste सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर
Shashank मणि Yadava 'सनम'
23-Oct-2022 06:42 AM
Wahh जी Kya लिखा है कवि श्रेठ ने
Reply
Khan
23-Oct-2022 12:20 AM
Bahut khoob 💐👍
Reply
Renu
22-Oct-2022 10:17 PM
👍👍
Reply